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प्री-पीएचडी कोर्स में पर्यावरणीय चेतना की आवाज़—मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने शोधार्थियों को किया प्रेरित

प्री-पीएचडी कोर्स में पर्यावरणीय चेतना की आवाज़—मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत ने शोधार्थियों को किया प्रेरित

डाकपत्थर: प्री-पीएचडी कोर्स के अंतर्गत डाकपत्थर महाविद्यालय में आयोजित एक विशेष वेबिनार में मैती आंदोलन के जनक पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा, “वृक्षों को बचाना सिर्फ परंपरा नहीं, यह आज की जरूरत है। मैती आंदोलन की आत्मा ही वृक्षारोपण है, और इस विचार को जन-जन तक पहुंचाना हमारी जिम्मेदारी है।”

अपने अनुभवों को साझा करते हुए रावत जी ने आगाह किया कि शहरों में कंक्रीट के जंगल उग आए हैं, और ऐसे में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षों को बचाना अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि मैती केवल एक आंदोलन नहीं, यह एक संस्कार है जो विवाह जैसे अवसरों पर पेड़ लगाने की परंपरा से जुड़ा हुआ है।

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. डी.एस. नेगी ने इस अवसर पर कहा कि कल्याण सिंह रावत जी द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन आज भी उतना ही प्रासंगिक है। डाकपत्थर महाविद्यालय में भी सघन वृक्षारोपण की आवश्यकता है, और हम इसे प्राथमिकता देंगे।

रिसर्च सेल के नोडल अधिकारी डॉ. विजय बहुगुणा ने जानकारी दी कि महाविद्यालय में चल रहे एड-ऑन कोर्स में उत्तराखंड के प्रमुख पर्यावरणीय आंदोलनों—चिपको आंदोलन, रक्षा सूत्र आंदोलन, छीनो-झपटो आंदोलन और मैती आंदोलन—को समाहित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह कोर्स आंदोलन की जमीन से निकले सच को समझने और आगे ले जाने की पहल है।

वेबिनार में शोधार्थियों के साथ-साथ अविनाश भट्ट, अनिल कुमार, अंकिता, संगीता कुमारी, गौरांग, विजय नेगी, प्रदीप दर्शन और रिंकू दास भी उपस्थित रहे।

 

 

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