
Uttrakhand news : नहीं पहुंच पाया बॉर्डर पर तैनात बेटा, बेटियों ने दिया पिता की अर्थी को कंधा और मुखाग्नि
पिथौरागढ़: उत्तराखंड के डीडीहाट विधानसभा क्षेत्र के बुंगाछीना के तोक खुलेती गांव में दो बहादुर बेटियों ने समाज की रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए मिसाल कायम की। 21 वर्षीय प्रियंका और 20 वर्षीय एकता ने पिता के निधन के बाद बेटे की भूमिका निभाते हुए उनकी अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार की सभी रस्में पूरी कीं। समाज में अक्सर बेटों को ये जिम्मेदारी निभाते देखा जाता है, लेकिन इन बेटियों ने इस धारणा को बदल दिया।
पिता के आकस्मिक निधन से छाया मातम
15 फरवरी की देर रात, 54 वर्षीय रवींद्र लाल का हृदय गति रुकने (हार्ट अटैक) से निधन हो गया। वे अपने पीछे पत्नी, दो बेटियां प्रियंका और एकता, और एक बेटा सचिन कुमार को छोड़ गए। सचिन इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) में तैनात हैं और वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश के बॉर्डर इलाके में अपनी ड्यूटी पर थे।
बेटे की गैरमौजूदगी में बेटियों ने निभाया फर्ज
परिवार ने सचिन को पिता के निधन की सूचना दी, लेकिन उन्हें पिथौरागढ़ पहुंचने में तीन दिन लगते। इस बीच, अंतिम संस्कार में देरी होने से परिवार दुविधा में था। ऐसे में प्रियंका और एकता ने साहस दिखाते हुए समाज की परंपराओं को दरकिनार कर अपने पिता के अंतिम संस्कार का निर्णय लिया।
बेटियों ने निभाई अंतिम रस्में
प्रियंका और एकता ने न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया, बल्कि पूरी अंतिम यात्रा में भी शामिल रहीं। रामगंगा और कोकिला नदी के संगम घाट पर गमगीन माहौल में उन्होंने मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार की रस्में पूरी कीं। यह दृश्य देख वहां मौजूद लोग भावुक हो गए और दोनों बहनों के साहस की सराहना करने लगे।
समाज ने की बेटियों के फैसले की तारीफ
इस घटना ने समाज में बेटियों के प्रति सोच को बदलने का संदेश दिया। आमतौर पर अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी बेटों पर होती है, लेकिन प्रियंका और एकता ने साबित कर दिया कि बेटियां किसी से कम नहीं होतीं। गांव के लोगों और रिश्तेदारों ने भी बेटियों के इस कदम की प्रशंसा की और इसे नई सोच की शुरुआत बताया।