Breaking
Mon. May 20th, 2024

देहरादून: अपराध की दुनिया में कई मामले ऐसे होते हैं, जो पुलिस और दूसरी जांच एजेसियों के लिए पहेली बनकर रह जाते हैं। इन मामलों की हर तरह से जांच भी होती है। सालों तक इन्वेस्टिगेशन। कई तरह के सुबूत, कई गवाहों के बयान। लेकिन, उसके बाद भी मामले की गुत्थी नहीं सुलझ पाती है।

ऐसी ही एक पहेली उत्तराखंड पुलिस के सामने आ खड़ी हुई है। ऐसी पहेली, जिसका जवाब पुलिस को ढूंढे नहीं मिल रहा है। ये पहेली किसी अपराध से ही जुड़ी है। लेकिन, पुलिस को इसमें किसी अपराधी की नहीं। बल्कि एक रिवाल्वर की तलाश है। ऐसी तलाश जो 23 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई है।

इस तलाश को खत्म करने के लिए पुलिस ने अब नए सिरे कुछ नया करने की ठानी है। इसमें पुलिस कितनी सफल हो पाती है? क्या इस बार पुलिस 23 साल पुरानी उल्झी गुत्थी को सुलझा पाएगी या इस बार भी पिछले सालों की तरह पहेली एक बार फिर अनबुझी रह जाएगी।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1999 में हत्या के प्रयास का एक मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में जिस रिवाल्वर से फायर किया गया, वह गायब हो गई और आज तक नहीं मिली। खास और रोचक बात यह है कि रिवाल्वर बैलेस्टिक जांच के लिए लेजाई गई थी। उस वक्त जिस दरोगा को मामले की जांच सौंपी गई थी, उन्होंने रिवाल्वर को पुलिस लाइन से रिसीव भी किया था। उनकी उम्र अब 80 साल हो चुकी है। पुलिस उनसे पूछताछ तो कर रही है, लेकिन उम्र के जिस पड़ाव पर वो हैं, उनको पुरानी बातें याद ही नहीं रहीं। पुलिस के लिए पहेली बनी रिवाल्वर मिलेगी भी या नहीं, यही बड़ा सवाल है?

जानकारी के अनुसार घटना के दौरान के अभिलेख आमद और रवानगी जीडी से जुड़े रिकॉर्ड 2005 में नष्ट किए जा चुके हैं। पुलिस की जो उम्मीदें थी। वह भी इन दस्तावेजों के साथ जलकर राख हो चुकी हैं। देहरादून से लेकर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर तक पुलिस ने जांच की। चिट्ठी-पत्री भेजी गई, लेकिन रिवाल्वर का पता नहीं चल पाया। थक हारकर एक बार फिर इस मामले में जांच अधिकारी की सिफारिश पर 23 साल बाद अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है।

जानकारी के मुताबिक, पटेलनगर थाने में दर्ज मुकदमे से संबंधित 1 प्वाइंट 38 रिवाल्वर को बैलेस्टिक एक्सपर्ट की जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला आगरा भेजा गया था। 16 नवंबर 1999 को SI जसवीर सिंह ने देहरादून पुलिस लाइन के शस्त्रागार से रिवाल्वर प्राप्त किया था।

इसके बाद रिवाल्वर का कुछ पता नहीं चला तो पुलिस लाइन की ओर से इस संबंध में पटेलनगर कोतवाली से पत्राचार किया गया, लेकिन यहां से कोई जानकारी नहीं दी गई। रिवाल्वर की बरामदगी के लिए 2020 में विधि विज्ञान प्रयोगशाला आगरा भी पुलिस पहुंची, लेकिन वहां से भी सूचना नहीं मिली।

SP सिटी ने रिवाल्वर प्राप्त करने वाले उपनिरीक्षक के बयान दर्ज करने के लिए बुलंदशहर के SSP को चिट्ठी लिखी। वह दारोग मूल रूप से बुलंदशहर के रहने वाले हैं और कई साल पहले रिटायर हो चुके हैं। उनकी उम्र भी 80 के पार हो चुकी है। उनको कुछ भी पुरानी बातें याद नहीं हैं।

पुलिस के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस रिवाल्वर के लिए 23 साल बाद मुकदमा दर्ज किया है, उसे कैसे खोजा जाएगा? जिस पहेली का हल ढूंढने के लिए इतना कुछ हो चुका है और भी किया जा रहा है। क्या उसका जवाब मिल पाएगा?

Related Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *