उत्तराखंड: मुन्ना के बयान पर फंसी भाजपा, माफी मांग रहे मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक!
उत्तराखंड: मुन्ना के बयान पर फंसी भाजपा, माफी मांग रहे मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक!
रुद्रपुर: भाजपा के लिए मुन्ना सिंह चौहान का बयान गले की हड्डी बनता जा रहा है। विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने गैरसैण विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सदन में एक बयान दिया था। उसमें उन्होंने उत्तराखंड में बंगाली विस्थापितों को अनुसूचित दर्जा देने का विरोध करते हुए उत्तराखंड की तराई में भारत विभाजन के बाद 1950 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के बसाए बंगालियों को पश्चिम बंगाल से घूमने फिरने और रहने आए लोग बता दिया।
इस पर अब तराई में बसे दो लाख बंगाली मतदाता भाजपा से नाराज हो गए गए हैं। बयान के बाद उठे सियासी तूफान के बाद तराई में भाजपा नेताओं को वोट बैंक के हाथ से खिसकने का डर सताने लगा है। इसको देखते हुए डैमेज कंट्रोल के लिए विधायक अरविंद पांडे, विधायक शिव अरोरा और मंत्री सौरभ बहुगुणा बकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके माफी मांग रहे हैं। गदरपुर, रुद्रपुर और सितारगंज के ये विधायक बंगाली वोटों से विधानसभा में हैं।
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इसी बीच पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल ने विधानसभा में सत्तादल के वरिष्ठ विधायक मुन्ना सिंह का बयान उनका निजी बयान नहीं है। सदन में भाजपा का नीतिगत बयान है, जिसका सदन में मौजूद मुख्यमंत्री और तीनों विधायक मंत्री ने विरोध नहीं किया है। उन्होंने कहा कि ये लोग मुसलमानों से तो नफरत करते ही हैं, लेकिन, बंगालियों से मुसलमानों से ज्यादा नफरत करते हैं।
पूर्व विधायक ने मुन्ना सिंह चौहान के बयान पर हैरानी जताते हुए कहा कि श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने पार्टी की स्थापना की ये लोग खुद को नेताजी और विवेकानंद के अनुयाई बताते हैं। लेकिन, बंगालियों को भारत का नागरिक नहीं मानते हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि ये बंगालियों को सिर्फ अपना वोटबैंक मानते हैं।
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ठुकराल ने कहा कि मुन्ना सिंह चौहान का बयान बिलकुल गलत है। उत्तराखंड में बंगाली पश्चिम बंगाल से रहने घूमने नहीं आए हैं। तराई को आबाद करने वाले भारत विभाजन के शिकार पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान से आए बंगाली और पंजाबी विस्थापितों को 1949 से भारत सरकार ने उन्हें यहां जमीन देकर पुनर्वास दिया था।
स्वतंत्रता सेनानी पूर्वांचल के लोग भी उसी समय आए थे। पंडित गोविंद बल्लभ पंत तब अविभाजित उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनकी पहल पर उत्तरप्रदेश में बड़ी संख्या में विस्थापितों का पुनर्वास हुआ। नैनीताल की तराई में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है।
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पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने तब पश्चिम बंगाल सरकार से अनुसूचित जातियों की सूची मंगाई थी। जिसके आधार पर पुनर्वास विभाग की ओर से बंगाली विस्थापितों को अनुसूचित जाति का सर्टिफिकेट दिया जाता था। इसी सूची के मुताबिक 1989 में यूपी के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने बंगाली छात्र छात्राओं को अनुसूचित जाति की छात्रवृत्ति देना शुरू किया,जिसे भाजपा सरकार ने बंद किया।
पश्चिम बंगाल के अलावा इसी सूची के मुताबिक ओडीशा,असम,त्रिपुरा और दूसरे राज्यों में बंगालियों को आरक्षण मिलता रहा है।प्रधानमंत्री बनने पर बंगाली विस्थापितों को नब्बे दिनों में आरक्षण देने का वादा किया था अटल बिहारी वाजपेई ने हल्द्वानी की चुनाव सभा में। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले क्पदमेीचनत और पीलीभीत में अनसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष अरुण हालदार की रैलियों का आयोजन करके चुनाव के बाद बंगाली विस्थापितों को आरक्षण देने की घोषणा की थी भाजपा ने।
अब भाजपा विधायक का यह बयान
- अरविंद पांडे, शिव अरोड़ा और मंत्री सौरभ बहुगुणा क्यों खामोश थे तो अब क्यों माफी मांग रहे हैं?
- क्या भाजपा तराई के लोगों को उत्तराखंड का स्थाई निवासी नहीं मानती?
- क्या भाजपा अब तक झूठे वादे करती रही?
- बंगालियों के नैनीताल संसदीय सीट में दो लाख वोटों के लिए उन्हें धोखा देते रहे हैं?
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