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बड़कोट नगर पालिका में सियासी घमासान, मैदान में भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय

बड़कोट नगर पालिका में सियासी घमासान, मैदान में भाजपा, कांग्रेस और निर्दलीय

  • प्रदीप रावत ‘रंवाल्टा

एक अनार सौ बीमार: कहावत इन दिनों नगर निकाय चुनावों पर सटीक बैठ रही है। आलम यह है कि नगर पालिका और नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर बैठने के लिए हर कोई आतुर है। हैरत तो इस बात की है कि सबको लगता है कि उनकी जीत पक्की है। आंकड़े भी अंगुलियों पर गिनाए जा रहे हैं। ऐसे में लगता है कि इस चुनाव में कोई हारेगा नहीं। बल्कि, सभी अध्यक्ष पद पर जीत जाएंगे। लेकिन…सच यह है कि दावे कोई चाहे जो भी करें जीत किसी एक की ही होगी।

उत्तरकाशी जिले की बड़कोट नगर पालिका का हाल भी एक अनार सौ बीमारों जैसी है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच माना जाता रहा है। इस बार भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। लेकिन, इस मर्तबा का गणित कुछ उलझा हुआ नजर आ रहा है। इस उलझन को सुलझाना भाजपा और कांग्रेस के लिए आसान नहीं रहेगा। हालांकि, कांग्रेस के पास एक सकारात्मक पहलू यह है कि यहां बगावत कमसे कम खुले तौर पर देखने को नहीं मिल रही है।

भजपा ने पूर्व अध्यक्ष अतोल रावत को मैदान में उतारा है। अतोल रावत मूल रूप से कांग्रेसी रहे हैं और कुछ समय पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं। उन्होंने आज अपना नामांकन करा दिया है। अतोल रावत की धरातल पर अच्छी पकड़ी मानी जाती है। यही उनको ताकतवर बनाती है। भाजपा का कैडर वोट मिलने से उनको और मजबूती मिली है।

वहीं, भाजपा से कपिलदेव रावत भी टिकट के मजबूत दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन, भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया। कपिल ने निर्दलीय ही मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया। कपिल ने नामांकन के जरिए अपनी ताकत भी दिखाई। कपिलदेव रावत पिछले 10 सालों से लगातार धरातल पर काम कर रहे हैं। लोगों की समस्याओं के लिए भी आवाज उठाते आए हैं।

कांग्रेस प्रत्याशी विजयपाल रावत को राजनीति में लोगों ने छात्रसंघ के अध्यक्ष के तौर पर देखा होगा। कांग्रेस संगठन में अहम पदों पर भी रहे हैं। लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि वो आंकड़ों की अच्छी जानकारी रखते हैं। रणनीति बनाने में माहिर हैं। विजयपाल रावत ने कांग्रेस की छात्र विंग एनएसयूआई से रराजनीतिक का ककहरा सीखा है।

लेकिन उनके प्रचार का तरीका आरएसएस की तरह है। यही बात उनको सबसे अलग और मजबूत बनाती है। उनको हल्के में लेने वाले यह ना भूलें के विजयपाल रावत पिछले कई सालों से डोर-टू-डोर प्रचार में जुटे हैं। लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए त्तात्पर रहते हैं। उनका दावा है कि उनके पास शहर के लिए कुछ करने का एक साफ रोडमैप भी है। 

एक और मजबूत चेहरा वरिष्ठ पत्रकार सुनील थपलियाल हैं। सुनील थपलिया पत्रकारिता के जरिए हमेशा से ही नगर की समस्याओं को मजबूती से उठाते आए हैं। उन्होंने भी आज नामांकन करावा दिया है। उनके साथ इस दौरान बड़ी संख्या में लोग नजर आए। सुनील थपलियाल लगातार जनता की समस्याओं के लिए समाचारों के जरिए हो या फिर धरना-प्रदर्शनों के माध्यम से आवाज उठाते आए हैं।

पानी की समस्या को लेकर हाई कोर्ट तक पहुंच गए। छात्र संघ अध्यक्ष से लेकर अब तक के अपने सफर में उन्होंने लोगों के कामों के लिए सड़क से शासन तक आवाज पहुंचाने का काम किया है। एक बार चुनाव भी हार चुके हैं, ऐसे में उनके पार्टी लोगों सिम्पैथी भी है।

उनके अलावा कई अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं। सबसे अपने-अपने दावे हैं। ऐसे में अब बड़कोट की जनता को तय करना है कि वो किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है। कौन वो चेहरा है, जिस पर वो भरोसा जता सकते हैं। उसका आधार क्या होगा। ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब अगले कुछ दिनों के भीतर कुछ हद तक सामने आने लगेगा।

बड़कोट गांव से ही अजय रावत ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन कराया है। अजय रावत भी भाजपा से ही टिकट मांग रहे थे। वो भी जनसमस्याओं के लिए आवाज उठाते रहे हैं। पानी आंदोलन हो फिर कोई दूसरा सामाजिक कार्य, अजय रावत सभी नजग शामिल नजर आते हैं।

एक और नाम राजाराम जगूड़ी का है। उनको मजबूत व्यापारी नेता माना जाता है। व्यापार मंडल के अध्यक्ष भी रहे हैं। उन्होंने भी नामांकन दाखिल किया है। उनका दावा है कि वो भी इस चुनाव में मजबूती से खड़े हैं और जीत हासिल करेंगे।

एक और नाम विनोद डोभाल का है, जो विधायक यंजय डोभाल के भाई हैं। उनका दावा है कि कार्यकर्ताओं के कहने पर वो मैदान में उतरे हैं और कार्यकर्ता ही उनको इस चुनाव में जीत दिलाएंगे। चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे प्रत्याशियों के इन दावों को वोटर किस कसौटी पर कसते हैं और किसको चुनाव जिताते हैं। इसके लिए इंतजार करना होगा।

लेकिन, कुछ सवाल भी हैं कि आखिर नगर पालिका क्षेत्र में वोटर कौन लोग हैं? क्या जितने वोटर लिस्ट में हैं, वो वास्तव में नगर क्षेत्र में रहते भी हैं या फिर उनका केवल नाम दर्ज कराया गया है? हालांकि, यह चर्चा का विषय नहीं है, लेकिन किसी भी प्रत्याशी की जीत-हार यही वोटर तय करेंगे। इनमें अधिकांशी वोटर ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। यही वोट प्रत्याशियों को भाग्य बदलने वाले साबित होंगे।

एक और फैक्टर यह है कि बड़कोट गांव से ही दो-तीन प्रत्याशी मैदान में हैं। इस लिहाज से गांव के वोट भी बंट जाएंगे। ऐसे में गांव के तीनों प्रत्याशियों को भी शहर क्षेत्र के वोटरों पर निर्भर रहना होगा। लेकिन, सवाल यह है कि शहर का वोटर किसके साथ खड़ा होगा। शहर से भी दो-दो मजबूत दावेदार हैं। ऐसे में नगर पालिका बड़कोट की लड़ाई काफी रोमांचक हो गई है। देखना होगा कि आखिर कौन बाजी मारता है।

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