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उत्तराखंड : नैनीताल हाईकोर्ट पर सबकी निगाहें, चुनाव होगा या बदल जाएगा पूरा कार्यक्रम

उत्तराखंड : नैनीताल हाईकोर्ट पर सबकी निगाहें, चुनाव होगा या बदल जाएगा पूरा कार्यक्रम

देहरादून/नैनीताल : उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होने के दो दिन बाद ही सरकार को न्यायिक झटका लग गया है। नैनीताल हाईकोर्ट ने सोमवार को चुनाव प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगा दी। यह रोक चुनाव में आरक्षण व्यवस्था से जुड़ी नियमावली की अधिसूचना (गजट नोटिफिकेशन) जारी किए बिना ही चुनाव कार्यक्रम घोषित किए जाने के कारण लगाई गई है।

आरक्षण प्रक्रिया को लेकर कई याचिकाएं

हाईकोर्ट में पंचायत चुनाव की तैयारियों और आरक्षण प्रक्रिया को लेकर कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं। सोमवार को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी अधिसूचना पर रोक लगाते हुए चुनाव कार्यक्रम को फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया है।

चुनाव की अधिसूचना हुई थी जल्दबाज़ी में जारी

राज्य निर्वाचन आयोग ने बीते शनिवार को पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी थी, जिसके तहत 25 जून से नामांकन प्रक्रिया शुरू होनी थी और प्रदेश में आदर्श आचार संहिता लागू कर दी गई थी। लेकिन आरक्षण नियमों को लेकर अभी तक गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया था, जो कि चुनाव प्रक्रिया का कानूनी और संवैधानिक हिस्सा होता है। इसी आधार पर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

आज होगी अहम सुनवाई, सरकार रखेगी पक्ष

मंगलवार 24 जून को इस मामले में हाईकोर्ट में दोबारा सुनवाई होनी है। जानकारी के अनुसार, पंचायती राज विभाग आज अदालत के समक्ष आरक्षण संबंधी गजट नोटिफिकेशन पेश कर सकता है और चुनाव की अनुमति मांगेगा। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि आयोग अभी हाईकोर्ट के लिखित आदेश की प्रति का इंतजार कर रहा है। आदेश प्राप्त होते ही उसके अनुरूप ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।

क्या होगा असर?

यदि अदालत द्वारा स्थगन आदेश को यथावत रखा जाता है, तो पंचायत चुनाव की पूरी समय-सारणी प्रभावित होगी। वहीं गजट नोटिफिकेशन के आधार पर यदि कोर्ट से चुनाव की अनुमति मिलती है, तो आयोग को नए सिरे से चुनाव कार्यक्रम घोषित करना पड़ सकता है।

सरकार की तैयारी पहले से रही सवालों के घेरे में

पंचायत चुनाव को लेकर धामी सरकार की तैयारी पहले दिन से ही विवादों में रही है। आरक्षण को लेकर स्पष्ट नियमों के अभाव में कई जिलों से आपत्तियां उठाई गई थीं। अब जब मामला न्यायालय में पहुंचा है, तो सरकार और आयोग दोनों पर चुनाव की पारदर्शिता और वैधानिकता को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

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