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उत्तराखंड में कौन चला रहा ‘मजार जिहाद’, लव और लैंड जिहाद से भी पुराना पैंतरा…

उत्तराखंड में कौन चला रहा ‘मजार जिहाद’, लव और लैंड जिहाद से भी पुराना पैंतरा…

उत्तराखंड में कौन चला रहा ‘मजार जिहाद’, लव और लैंड जिहाद से भी पुराना पैंतरा… पहाड़ समाचार editor

देहरादून: पिछले दिनों पछवा दून में सीएम धामी के निर्देश पर अवैध मजारों पर बुल्डोजर चला। इन मजारों का खुलासा सामजिक संगठनों ने किया था। शिकायतों का संज्ञान लेकर सीएम धामी ने पहले मजारों के चिन्हिकरण का काम किया और फिर बुलडोजर एक्शन से मजारों को उजाड़ दिया। सवाल यहाँ है कि उत्तराखंड में ‘मजार जिहाद’ कौन चला रहा?

लैंड जिहाद और लव जिहाद की खूब चर्चा होती रही है। लेकिन, मजारों के नाम पर जमीनें कब्जाने को लेकर कभी आवाज नहीं उठाई गई थी। उठाई भी गई होगी तो सरकार ने उस पर ध्यान दिया और ना ही प्रशासन की ओर से कोई एक्शन लिया गया है। कई जगहों पर मस्जिदों के नाम पर जमीनें कब्जाई जा रही हैं। कोटद्वार में मजार और मस्जिद की आड़ में जमीन पर कब्जे का मामला इन दिनों चर्चाओं में बना हुआ है।

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सबसे ज्यादा कब्जा वन विभाग की जमीनों पर हुआ है। खासकर रिजर्व फोरेस्ट में। इन जंगलों में आम लोगों को जाने तक ही अनुमति नहीं मिलती, उन जंगलों में कई मजारें बना दी गई और वन विभाग के अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी है। राजधानी देहरादून से लेकर गढ़वाल और कुमाऊं के कई इलाकों में इस तरह की कई मजारें बनती चली गई।

इसी मजार जिहाद पर पांचजन्य में एक रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुमाऊं में कालू सैय्यद बाबा की मजार अल्मोड़ा में बताई जाती है। यहां उनके घोड़े की भी मजार है। लेकिन, इन्हीं कालू सैय्यद बाबा की मजार हल्द्वानी के कालाढूंगी चौराहे, लामाचौड़, कालाढूंगी, रामनगर, जसपुर, गैबुआ और कॉर्बेट पार्क के भीतर भी बनी हुई हैं। नियमानुसार मजार उस जगह पर बनाई जाती है, जहां पर उनको दफनाया जाता है। सवाल यह है कि एक ही कालू सैय्यद मजारें कई जगहों पर कैसे हो सकती हैं?

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रिपोर्ट के अनुसार राजधानी देहरादून के पछवा दून में सैय्यद बाबा की कई मजारें हैं। यहां भी ऐसा लगता है कि इन मजारों को किसी रणनीति से बनाया गया है। ये मजारें जीवन गढ़, जलालिया, हरबर्टपुर, पृथ्वीपुर, तेलपुर, सहसपुर में मिल जाएंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि एक शख्स क्या इतनी जगह दफनाया गया होगा? सैय्यद की मजार भीमताल में भी है, ये कौन से पीर हैं, जो यहां दफनाए गए। पछुवा दून में पीर बाबा की मजार के नाम से सहसपुर, बालूवाला, शेरपुर, छरबा, भीमावाला में मजारें बनाई गई हैं। एक नाम से कई-कई मजारें खड़ी कर दी गई हैं।

पांचजन्य में छपी दिनेश मानसेरा की रिपोर्ट बताती है कि मजार के नामों को लेकर एक और जानकारी मिल रही है कि ज्यादातर मजारें ऐसी हैं, जिनके नाम को लेकर हिंदू समुदाय भ्रमित रहे, क्योंकि इन मजारों में मुस्लिम नहीं, हिंदू ज्यादा जाते देखे गए हैं। ऐसी जानकारी में आया है कि देवबंदी मुस्लिम इन मजारों को नहीं मानते हैं। मजारें बरेलवी मुस्लिम बनवाते हैं और इनका यहां झाड़-फूंक का धंधा चलता है।

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ये लोग हिंदू समुदाय को अपना लक्ष्य बनाए रखते हैं। इसलिए यहां कालू, भूरे शाह, इमली वाले बाबा, ढपल्ली वाले पीर बाबा, जैसे नाम मजारों के मिलेंगे। कालू सैय्यद को धीरे-धीरे कालू सिद्ध नाम मिलने लगता है। कुछ एक ने कालू साई प्रचारित करना शुरू कर दिया है। ये सब एक मार्केटिंग का तरीका है, जो उत्तराखंड में मजार जिहाद का हिस्सा बन चुका है।

उत्तराखंड में कौन चला रहा ‘मजार जिहाद’, लव और लैंड जिहाद से भी पुराना पैंतरा… पहाड़ समाचार editor

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