उत्तराखंड : यहां 4 पहियों वाली नहीं, 4 कंधों वाली एम्बुलेंस ही सहारा है…कुछ करो सरकार
देहरादून: सरकारें हर बार स्वास्थ्य सेवाओं के चाक-चौबंद होने का दावा करती हैं। वातानुकूलित कमरों कि ठंडक में बैठकर दिए गए मंत्री और अधिकारियों के बयान धरातल पर शून्य नजर आते हैं। आदेशों और निर्देशों का भी कुछ अता-पता नहीं होता है। उनके खोखले दावों की पोल पहाड़ से आती तस्वीरें अक्सर खोलती रहती हैं। ऐसी ही एक और तस्वीर स्वास्थ्य विभाग की बदहाली की हकीकत को बयां कर रही है। यहां चार पहिये ही एम्बुलेंस हैं और वही लोगों का सहारा हैं।
यह मामला चमोली जिले के दूरस्थ पाणा (इराणी) गांव का है। गांव की महिला को अचानक प्रसव पीड़ा होने लगी। गांव और आसपास डॉक्टर तो दूर नर्स भी तक भी उपलब्ध नहीं है। मजबूरी में ग्रामीणों ने कुर्सी की पालकी बनाकर महिला को गांव से 10 किलोमीटर पैदल सड़क तक और फिर वहां से 40 किलोमीटर सड़क से जिला मुख्यालय गोपेश्वर के सरकारी अस्पताल लेजाने का मन बनाया।
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लेकिन, जैसे ही ग्रामीण गांव से 5 किलोमीटर दूर पहुंचे, महिला की प्रसव पीड़ा बढ़ गई। साथ आए लोगों ने महिला का रास्ते में ही प्रसव करा दिया। गनीमत रही कि रास्ते में प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा सुरक्षित है। इसके बाद बिना इलाज के ही ग्रामीण महिला को वापस पांच किमी पैदल चलकर गांव ले गए।
ग्रामीण कई बार गांव तक सड़क की मांग कर चुके हैं। लेकिन, दशोली कासखंड की सुदूरवर्ती ग्राम पंचायत पाणा गांव तक सड़क बनाने से जैसे सरकार गांव वालों से रूठी हुई है। सवाल यह है कि फिर विकास और गांव-गांव सड़क के दावे क्यों किए जाते हैं। गांव की महिलाओं के साथ ही नहीं।
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किसी के भी बीमार होने पर ग्रामीण ऐसे ही चार कंधों को एंबुलेंस बनाकर अपने मरीजों को अस्पातल पहुंचाते हैं। कुछ भाग्य से बच जाते हैं। कुछ मामलों में समय से इलाज नहीं मिलने के कारण लोगों को जानें भी गंवानी पड़ती है।
लेकिन, पैदल मार्ग की पगडंडी की थकान और मुश्किलों ने 5 किमी सफर के बाद नंदी देवी ने रास्ते में बच्चे को जन्म दे दिया। ग्रामीण भरत सिंह ने बताया कि उनकी पत्नी नंदी देवी को सुबह प्रसव पीड़ा शुरू हुई। गांव और आसपास कोई स्वास्थ्य सेवा नहीं है। गांव में एक मात्र आशा के भरोसे ही लोग रहते हैं।