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मुलाकातों से निकला सवाल, कौन है धामी का दुश्मन, हरिश रावत ने दिल्ली में क्या सूंघ लिया?

मुलाकातों से निकला सवाल, कौन है धामी का दुश्मन, हरिश रावत ने दिल्ली में क्या सूंघ लिया?

मुलाकातों से निकला सवाल, कौन है धामी का दुश्मन, हरिश रावत ने दिल्ली में क्या सूंघ लिया?

  • पहाड़ समाचार

पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड के मंत्री लगातार दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह के साथ तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। इनमें पूर्व और वर्तमान सांसद भी शामिल हैं।  तस्वीरों में एक बात जो मेल खाती है, वो ये है कि सभी ने इन मुलाकातों को शिष्टाचार भेंट बताया है। लेकिन, सवाल होता है कि क्या वास्तव में ये मुलाकातें केवल शिष्टाचार मुलाकातें थीं या फिर इसके पीछे कुछ और राज है? 

इन मुलाकातों की बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी दिल्ली में कुछ ऐसा सूंघ लिया कि उत्तराखंड में चर्चा ने जोर पकड़ लिया। सवाल यह है कि मुख्यमंत्री धामी का दुश्मन कौन है? कौन उनको कुर्सी से हटाना चाहता है?

इधर, देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से विधायकों के मिलने का सिलसिला भी इन्हीं मुलाकातों के बीच शुरू हुआ, जिनमें सीएम धामी से गले मिलता हुआ नजर आया, तो कोई खिलखिलाकर हंसते हुए। कोई फूल देते हुए नजर आया। इस सिलसिले की खूब चर्चा भी हुई और अब खुसुर-फुसुर हो ही रही है।

कांग्रेस ने इन मुलाकातों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लेकर नाराजगी करार दिया था। कांग्रेस का कहना था मुख्यमंत्री किसी की सुन नहीं रहे हैं। कुमाऊंवाद और गढ़वालवाद से भी जोड़ा गया। अब इन सभी बातों को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी हवा देने का कम किया है। उन्होंने सोशल मीडिया में एक पोस्ट शेयर की है, जिसमें वे कह रहे हैं कि उत्तराखंड में परिवर्तन के लिए भाजपा सांसद और नेता दबाव बना रहे हैं।

पूर्व सीएम हरीश रावत की पोस्ट

बहुत दिनों बाद दिल्ली आया तो सेंट्रल हॉल में अपने पुराने दोस्तों को खोजने चला गया। पत्रकार भी मिल जाते हैं और राजनीतिक कलाकार भी मिल जाते हैं। हरदा कहते हैं कि काफी और टोस्ट का आनंद लेते हुए मुझे बड़ी चौकाने वाली बात सुनाई दी।

बोले भई तुम्हारे सांसदगण तो यहां बड़ा दबाव डाल रहे हैं और यह एक खग्गाड़ पुराने भाजपाई से सुनकर के मैं बड़ा चौंका। खैर आगे मैंने और कुरेदने की कोशिश की तो उन्होंने इधर-उधर बातें बहला दी।

मैंने सोचा शायद इससे ज्यादा नहीं कहना चाहते। मैं इत्तेफाक से प्रेस क्लब भी चला गया। वहां बहुत सारे लोग मिले। कुछ हमारे पहाड़ी पत्रकार बंधु भी मिले जो आजकल भाजपा के गुणगान में लगे हुए हैं।

उनसे कुरेदते-कुरेदते पता चला कि कुछ उज्याडू़ बल्द अब यहां तक भाजपा में जम और रम गए हैं कि वह बड़ी तमन्नाएं रखने लग गए हैं, तो मुझे दोनों जगह सूंघने पर लगा कि कुछ न कुछ है, अब क्या है भगवान जाने? और यूं भी नीचे परिवर्तन करते रहो और ऊपर जमे रहो, यह भाजपा का राजनीतिक मंत्र है।

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