द्रौपदी मुर्मू देश की अगली राष्ट्रपति होंगी। तीन दौर की गिनती के बाद ही उन्होंने निर्णायक बढ़त ले ली। एक समय था जब आदिवासी परिवार से आने वाली मुर्मू झोपड़ी में रहती थीं। अब उन्होंने 340 कमरों के आलीशान राष्ट्रपति भवन तक का सफर पूरा कर लिया है।

मुर्मू का ये सफर इतना आसान भी नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए मुर्मू ने न जाने कितनी तकलीफें झेलीं हैं। इस सफर में कई अपने भी दूर हो गए।

कष्ट इतना मिला कि कोई आम इंसान कब का टूट गया होता। फिर भी मुर्मू ने न केवल संघर्ष जारी रखा बल्कि देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचने में कामयाब हुईं। आज मुर्मू न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर के अरबों लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं।

द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता का नाम बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। भगत टुडू और सरैनी टुडू।

द्रौपदी की शादी श्यामाचरण मुर्मू से हुई। उनसे दो बेटे और दो बेटी हुई। साल 1984 में एक बेटी की मौत हो गई। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं।

कॉलेज जाने वाली गांव की पहली लड़की

मुर्मू की स्कूली पढ़ाई गांव में हुई। साल 1969 से 1973 तक वह आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ीं। इसके बाद स्नातक करने के लिए उन्होंने भुवनेश्वर के रामा देवी वुमंस कॉलेज में दाखिला ले लिया। मुर्मू अपने गांव की पहली लड़की थीं, जो स्नातक की पढ़ाई करने के बाद भुवनेश्वर तक पहुंची।

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान हुआ प्यार

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात श्याम चरण मुर्मू से हुई। दोनों की मुलाकात बढ़ी, दोस्ती हुई, दोस्ती प्यार में बदल गई। श्याम चरण भी उस वक्त भुवनेश्वर के एक कॉलेज से पढ़ाई कर रहे थे।

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