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कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त

कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त

नैनीताल : दून घाटी की अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज उत्तराखंड हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई। कांग्रेस प्रवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायाधीश आलोक माहरा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार से स्पष्ट जवाब तलब किया है। अदालत ने निर्देश दिया कि दून घाटी से संबंधित सभी कार्य सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988 के निर्देशों के अनुरूप ही हों।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को अवगत कराया कि केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 13 मई 2025 को एक शासनादेश जारी कर 1989 की अधिसूचना को निष्क्रिय कर दिया, जिससे दून घाटी क्षेत्र में भारी औद्योगिक गतिविधियों को हरी झंडी मिल गई है। इसमें स्लॉटर हाउस, क्रशर माइनिंग, और रेड कैटेगरी की अन्य औद्योगिक इकाइयों को स्थापित करने की अनुमति शामिल है।

याचिका में कहा गया है कि यह निर्णय भारत सरकार के National Clean Air Programme (NCAP) के भी विपरीत है, जिसके तहत देहरादून और ऋषिकेश जैसे शहरों को वायु गुणवत्ता सुधार के लिए चिन्हित किया गया था। देहरादून, देश के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है जहां PM10 की मात्रा अनुमेय सीमा से तीन गुना पाई गई है।

उल्लेखनीय है कि 01 फरवरी 1989 को जारी दून घाटी अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लागू की गई थी ताकि मसूरी, डोईवाला, सहसपुर, ऋषिकेश और विकासनगर जैसे क्षेत्रों को अवैध खनन और प्रदूषण से बचाया जा सके। परंतु अब इस अधिसूचना को हटाकर इन क्षेत्रों को रेड जोन कैटेगरी के औद्योगिक विकास के लिए खोला जा रहा है, जिससे पर्यावरणीय संकट गहरा सकता है।

याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी दो बार – 8 फरवरी 2024 और 4 मार्च 2025 – इस विषय पर ज्ञापन सौंपा था। इसके बाद पीएमओ के हस्तक्षेप से पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तराखंड वन विभाग से रिपोर्ट मांगी, लेकिन बावजूद इसके 13 मई 2025 को शासनादेश जारी कर अधिसूचना को निष्क्रिय कर दिया गया।

थापर ने कहा कि यह सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि 15 लाख लोगों के जीवन और उत्तराखंड की पारिस्थितिकी से जुड़ा मसला है। जब जोशीमठ, रैणी, उत्तरकाशी जैसी त्रासदियों के बाद भी सरकार नहीं चेती, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम इस निर्णय के खिलाफ अंत तक संघर्ष करेंगे।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देशित किया है कि वह पर्यावरण मंत्रालय को विस्तृत जानकारी देकर इस अधिसूचना के निष्क्रिय किए जाने से हुए नुकसान के प्रमाण प्रस्तुत करे। मामले की अगली सुनवाई 27 जून को निर्धारित की गई है।

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