
देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना
- 1989 के दून घाटी अधिसूचना को खत्म कर उद्योगपतियों के लिए खोला गया रास्ता, एनजीटी ने केंद्र व राज्य को भेजा नोटिस।
देहरादून। राज्य सरकार द्वारा देहरादून घाटी की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए केंद्र सरकार से दून वैली नोटिफिकेशन 1989 को रद्द करवा कर नया अधिसूचना 13 मई 2025 को जारी करवाने पर विवाद गहराता जा रहा है।
इस अधिसूचना के तहत अब रेड और ऑरेंज श्रेणी के प्रदूषणकारी उद्योगों को लगाने के लिए केंद्र सरकार की अनापत्ति की जरूरत नहीं रहेगी। इसके खिलाफ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं देवभूमि मानव संसाधन विकास समिति एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में याचिका दाखिल कर दी है।
NGT ने याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उत्तराखंड के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर 19 सितंबर 2025 को जवाब तलब किया है।
उद्योगपतियों के लिए बनाई गई नीति
देहरादून स्थित कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में धस्माना ने कहा कि “राज्य सरकार अपने मित्र उद्योगपतियों को प्रदूषणकारी उद्योग लगाने की छूट देने के लिए ‘ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी’ की नीति पर चल रही है। 1989 की अधिसूचना आड़े आ रही थी, इसलिए अधूरी व भ्रामक जानकारियों के आधार पर नया नोटिफिकेशन केंद्र से जारी करवाया गया।”
धस्माना ने चेतावनी दी कि इस नीति से देहरादून की जलवायु, पारिस्थितिकी, नदियां, खाल, जंगल, जल स्रोत और कृषि योग्य भूमि पर सीधा खतरा मंडरा रहा है। अगर यह नोटिफिकेशन वापस नहीं लिया गया, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका भयावह खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
दून घाटी: संवेदनशील और भूकंप संभावित क्षेत्र
उन्होंने याद दिलाया कि 1989 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर केंद्र सरकार ने दून वैली नोटिफिकेशन जारी किया था, जिससे देहरादून घाटी को विशेष दर्जा मिला था। इसका उद्देश्य घाटी की पारिस्थितिकी रक्षा करना था, क्योंकि यह क्षेत्र भूकंपीय क्षेत्र 4 व 5 में आता है और प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील है। उन्होंने चेताया कि “अगर इसे समाप्त कर दिया गया, तो देहरादून भी केदारनाथ और धराली जैसी आपदाओं का गवाह बन सकता है।”
राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष की घोषणा
धस्माना ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि इसे एक राजनैतिक और सामाजिक आंदोलन का रूप दिया जाएगा। “यह लड़ाई केवल प्रदूषण की नहीं, बल्कि देहरादून की आत्मा को बचाने की है। यदि यह घाटी उजड़ गई, तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा के मीडिया सलाहकार सरदार अमरजीत सिंह, श्रम विभाग के अध्यक्ष दिनेश कौशल, प्रदेश प्रवक्ता गिरिराज किशोर हिंदवाण, अधिवक्ता वेदांत बिजलवान और अभिषेक दरमोड़ा उपस्थित रहे।