उत्तराखंड: कॉमरेड अतुल सती को नजरबंद करने वालों पर हो कार्रवाई: कॉमरेड इंद्रेश मैखुरी
चमोली: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के 9 अगस्त के जोशीमठ दौरे के दौरान भाकपा (माले) की राज्य कमेटी के सदस्य कॉमरेड अतुल सती के घर के आगे पुलिस और इंटेलिजेंस का पहरा बैठाए जाने की घटना की हम तीव्र तीव्र निंदा करते हैं. लोकतंत्र विरोधी मत के लोगों से भी संवाद से चलने वाली व्यवस्था का नाम है. सिर्फ राजनीतिक मतभिन्नता की वजह से किसी व्यक्ति के घर के आगे पुलिस का पहरा बैठा देना अलोकतांत्रिक एवं तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही है, जिसे किसी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
कॉमरेड अतुल सती जोशीमठ क्षेत्र में जन सरोकारों और जन समस्याओं को उठाने वाला प्रमुख स्वर हैं. लोकतंत्र का तकाजा तो यह था कि स्वयं मुख्यमंत्री पहल करके जोशीमठ क्षेत्र में जनता की दुख-तकलीफ़ों को समझने के लिए उन्हें बुलाते. यह तो न हुआ, लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से मुख्यमंत्री के सामने राजीव गांधी अभिनव विद्यालय के सुचारु संचालन की बात रखने का अवसर देने के लिए, उन्हें घर में नज़रबंद करने का रास्ता पुष्कर सिंह धामी के पुलिस और प्रशासन ने चुना.
मुख्यमंत्री से प्रतिनिधि मंडल मिलाए जाने की मांग पर चमोली जिले के प्रशासन ने उस प्रतिनिधि मंडल में कॉमरेड अतुल सती को न रखने की शर्त रख दी. चमोली जिले के जिलाधिकारी को स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसी शर्त रखने में उनका कोई आकलन काम कर रहा था या पूर्वाग्रह?
निश्चित तौर पर कॉमरेड अतुल सती को प्रतिनिधि मंडल में रखने के पीछे जिलाधिकारी, चमोली के दिमाग में हेलंग में उनकी वह भूमिका रही होगी, जिसके चलते आंदोलनकारियों उन्हें जिलाधिकारी पद से हटाने की मांग कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वे भी हेलंग की घटना का अपने सामने जिक्र होने की आशंका से उसी तरह ग्रसित थे, जिस तरह कि चमोली के जिलाधिकारी थे? जोशीमठ आने के बावजूद हेलंग की पीड़ित महिलाओं से न मिलने और उस प्रकरण पर कुछ न बोल कर मुख्यमंत्री ने सिद्ध किया कि उत्तराखंड की महिलाओं की पीड़ा से उनका कोई सरोकार नहीं है.
भाकपा (मोले) के गढ़वाल सचिव कॉमरेड इंद्रेश मैखुरी ने चमोली जिले के प्रशासन को स्पष्ट करना चाहिए कि किस कानून के तहत कॉमरेड अतुल सती के घर के बाहर पुलिस और इंटेलिजेंस का पहरा बैठाया गया? उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिए कि कॉमरेड अतुल सती को उनकी सहमति से घर में नज़रबंद किया गया या उनकी जानकारी के बगैर ऐसा हो गया. यदि उनकी सहमति से ऐसा हुआ तो क्या वे विपक्ष की आवाज़ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलना चाहते हैं?
यदि ऐसा उनकी सहमति के बिना चमोली के जिलाधिकारी ने हेलंग प्रकरण की आवाज़ को दबाने के लिए किया तो जनता की आवाज़ को कुचलने का षड्यंत्र रचने वाले अधिकारी के खिलाफ वे क्या कार्यवाही कर रहे हैं? हमारी मांग है कि लोकतांत्रिक आवाजों को कुचलने का षड्यंत्र रचने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही हो, साथ ही इस तरह की दमनकारी प्रवृत्ति पर रोक लगे.