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उत्तराखंड: संस्कृति विभाग का गजब कारनामा, पदमश्री बसंती बिष्ट का भुगतान खा गया…!

उत्तराखंड: संस्कृति विभाग का गजब कारनामा, पदमश्री बसंती बिष्ट का भुगतान खा गया…!

उत्तराखंड: संस्कृति विभाग का गजब कारनामा, पदमश्री बसंती बिष्ट का भुगतान खा गया…!

  • न केदारनाथ का भुगतान किया, न निनाद का पैसा दिया.

  • पहले मिलते थे 25 हजार, अब घटा कर कर दिये 7500, वो भी नहीं दिये.

  • क्या जिम्मेदार अधिकारीयों के खिलाफ कार्रवाई करेगी सरका?

  • गुणानंद जखमोला

सरकार दावे तो तमाम करती है, लेकिन दावों की हकीकत कुछ ऐसी है कि वो गले नहीं उतरती। लोक कलाकारों की बेहतरी के लिए कई तरह की योजनाएं चालने की हवाई बातें कही गई। लेकिन, बेहतरी के बजाय लोक कलाकारों का अपमान किया जा रहा है। यह मसला उस कलाकार से जुड़ा है, जिनको भारत सरकार ने उनके योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आम कलाकारों के साथ क्या होता होगा?

70 वर्षीय जागर गायिका बसंती बिष्ट की कला को पूरे देश ने सम्मान दिया। उन्हें भारत सरकार ने सर्वाेच्च नागरिक सम्मान पदमश्री दिया। लेकिन, हमारा अपना संस्कृति विभाग न उन्हें सम्मान दे रहा है और न ही उनका भुगतान कर रहा है। उम्र के इस पड़ाव में जबकि विभाग को उन्हें घर बैठकर मानदेय देना चाहिए था, उनका ही भुगतान हड़प लिया।

लंबित भुगतान के लिए विभाग के चक्कर काट-काट कर पदमश्री घर बैठ गयी हैं। लेकिन, मजाल क्या है कि संस्कृति विभाग की निदेशक वीना भट्ट के सिर पर जूं रेंगी हो। पदमश्री बसंती बिष्ट के अनुसार अगस्त माह में निनाद में वीना भट्ट ने हाथ जोड़े कि दीदी आपको आना है। उनके मुताबिक संस्कृति विभाग ने उनका मेहनताना 7500 रुपये तय किया है। जबकि 2007-08 में उन्हें 25 हजार मिलते थे।

दूरदर्शन और आकाशवाणी में वह ग्रेड ए की कलाकार हैं तो वहां भी उन्हें 30 हजार मिलते हैं। लेकिन, संस्कृति विभाग ये 7500 रुपये भी नहीं देता। पदमश्री की पीड़ा है कि लोक कलाकारों के लिए विभाग कभी पसीजता ही नहीं। उनका शोषण हो रहा है। निनाद में उन्हें 50 हजार देने की बात हुई। बिल दिये हैं, लेकिन भुगतान नहीं हुआ।

पद्मश्री बसंती बिष्ट के अनुसार पिछले कई वर्षों से विभाग ने भुगतान ही नहीं किया। 2019 के बिल भी लंबित हैं। गत वर्ष मई में केदारनाथ में दो दिन कार्यक्रम किया। 12 लोगों की टीम घोड़ों पर बैठकर गयी। सामान ढोया। संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने इसके लिए 2 लाख रुपये की मंजूरी दी थी। आज तक चवन्नी नहीं मिली। वह पूछती हैं कि ऐसे में लोक कलाकार कहां जाएं?

आपको बता दूं कि संस्कृति विभाग कितना झूठा है, इसके प्रमाण मेरे द्वारा आरटीआई में ली गयी जानकारी है। विभाग ने अगस्त में चार दिवसीय निनाद कार्यक्रम में लोक कलाकारों को दिये गये भुगतान के बारे में मुझे जानकारी दी कि उनके बिल नहीं मिले हैं, इसलिए भुगतान नहीं किया।

जबकि पवनदीप राजन को 19 लाख का भुगतान किया गया। उसे तो बकायदा चार लाख रुपये एडवांस दिये गये। कुछ दिन पहले मुझे आरजे काव्या मिले। उन्होंने निनाद में एंकरिंग की। उनको भी चवन्नी नहीं मिली है। इससे सवाल उठता है कि है कोई इस प्रदेश में लोक कलाकारों की सुध लेने वाला।

सवाल यह है कि क्या संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? या एक बार फिर जल्द भुगतान का हवाई दावा किया जाएगा। आख्रि कम तक लोक कलाकार ऐसे ही संस्क्ति विभाग के अधिकारियों के आगे गिड़ताते रहेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। कई प्रतिष्ठित अखबारों में कई सालों तक काम किया। उत्तरजन टुडे पत्रिका का साहसिक संचालन कर रहे हैं। सोशल मीडिया में उनकी खबरों से हलचल मच जाती है। वर्तमान दौर में जहां दरबारी पत्रकारिता चल रही है। वहीं, गुणानंद जमखोला निष्पक्ष, निर्भीक और निडर पत्रकारिता कर रहे हैं।)

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