
उत्तराखंड : 25 साल बाद भी अधूरी उम्मीदें और बढ़ती चुनौतियां, क्या आम आदमी भी जश्न मना रहा है?
- प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’
9 नवंबर 2025 उत्तराखंड अपना 25वां राज्य स्थापना दिवस मना रहा है, लेकिन देवभूमि की यह रजत जयंती खुशी के साथ-साथ गहरे दर्द की भी गवाह है। 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर बने इस राज्य ने आंदोलनकारियों के बलिदान से जन्म लिया था। सपना था एक समृद्ध, आत्मनिर्भर पहाड़ी राज्य का, जहां रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं हर गांव तक पहुंचें। लेकिन, 25 साल बाद तस्वीर उलटी है। घोस्ट विलेज, पलायन का दर्द, प्राकृतिक आपदाओं का कहर और बेरोजगारी की मार। राज्य की अर्थव्यवस्था बढ़ी तो है, लेकिन विकास मैदानी इलाकों तक सिमट गया, जबकि पहाड़ खाली होते जा रहे हैं। बड़ा स्वाय यह है कि क्या आम आदमी भी जश्न मना रहा है?
पलायनर : पहाड़ों का सबसे बड़ा नासूर
उत्तराखंड की सबसे बड़ी बदहाली पलायन है। राज्य गठन के बाद से लाखों लोग गांव छोड़ चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 1700 से अधिक गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं, जिन्हें घोस्ट विलेज कहा जाता है। 2018 में यह संख्या 734 थी, जो अब बढ़कर 2000 के करीब पहुंचती जा रही है। 3 लाख से ज्यादा घरों पर ताले लटक रहे हैं। हर दिन औसतन 138 लोग गांव छोड़ रहे हैं।
कारण?
बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर है, खेती लाभदायक नहीं। युवा शहरों या मैदानी इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं। कोविड के बाद रिवर्स माइग्रेशन हुआ, लेकिन सुविधाओं की कमी से वह स्थायी नहीं रहा। सरकार ने 100 मॉडल गांव बनाने की योजना शुरू की, लेकिन जमीनी स्तर पर असर कम है। सोशल मीडिया पर भी लोग यही सवाल उठा रहे हैं कि 25 साल बाद भी पलायन क्यों नहीं रुका?
प्राकृतिक आपदाएं: विकास का विनाशकारी चेहरा
उत्तराखंड जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में शुमार है। 2025 में ही उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से भारी तबाही हुई। पिछले 8-10 सालों में 3500 से ज्यादा मौतें हुईं, अरबों की संपत्ति बर्बाद। भूस्खलन की 4654 घटनाएं दर्ज हुई।
अनियोजित विकास
चार धाम यात्रा मार्ग पर चौड़ीकरण से 150 नए भूस्खलन जोन बने। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने भी इसे अवैज्ञानिक बताया। वनों की कटाई, जलविद्युत परियोजनाएं और ग्लेशियर पिघलना आपदाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। 2025 की बाढ़ और भूस्खलन ने सड़कें, पुल और घर बहा दिए। विशेषज्ञ कहते हैं, अगर नहीं चेते तो देर हो जाएगी।
बेरोजगारी और असमान विकास
राज्य की अर्थव्यवस्था 26 गुना बढ़ी, लेकिन लाभ असमान। मैदानी जिलों (हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और दूरादून के मैदानी हिस्से) में विकास की रफ्तार ते रही, जबकि पहाड़ी इलाकों में बेरोजगारी चरम पर है। युवा रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं कमजोर, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं और स्कूलों में ताले लटक रहे हैं। पर्यटन और जलविद्युत पर निर्भरता बढ़ी, लेकिन पर्यावरण को नुकसान हुआ। भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता ने नीतियों को प्रभावित किया। डेमोग्राफिक बदलाव भी चिंता बढ़ा रहा है, जनसंख्या असंतुलन, मूल निवासियों का शोषण सबसे बड़ी चिंताएं हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। हाल में राज्य निर्माण के 25 होने पर विशेष सत्र बुलाया गया, उस सत्र से एक नई बहस पहाड़ और मैदान की शुरू हो गई है।
सरकार की कोशिशें और जनता की निराशा
सरकार मॉडल गांव, रिवर्स माइग्रेशन और आपदा प्रबंधन की योजनाएं चला रही है। लेकिन, जनता कहती है, विकास नेताओं-अफसरों तक सिमटा हुआ है। सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर राज्य के स्थापना दिवस पर बधाई किस बात की? जब राज्य में शराब पुलिस पहरे में बेची जा रही है। भ्रष्टाचार चरम पर है और पलायन जारी है।
राज्य संवारने और बचाने की जरूरत
उत्तराखंड की 25 साल की यात्रा सिखाती है कि सिर्फ़ राज्य बन जाना काफी नहीं, उसे बचाना और संवारना ज़्यादा बड़ा संघर्ष है। घोस्ट विलेज, खाली होते स्कूल, टूटते पुल और हर साल बढ़ती आपदाएं चीख-चीखकर बता रही हैं कि हमने सपनों को कागज़ों तक सीमित रखा, धरातल पर उतारने की ईमानदार कोशिश नहीं की।
पहाड़ों के लिए अलग विकास नीति बनाने की आवश्यकता
राज्य की अर्थव्यवस्था चमक रही है, लेकिन वह चमक सिर्फ़ मैदानी शहरों की है; पहाड़ अंधेरे में डूबते जा रहे हैं। पलायन कोई प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं, यह नीतिगत विफलता का जीता-जागता सबूत है। चार धाम की चौड़ी सड़कें बन गईं, लेकिन गांवों तक पहुंचने वाली पगडंडियां आज भी टूटती हैं। पर्यटन से कमाई बढ़ी, पर पर्यावरण का नुकसान इतना कि आने वाली पीढ़ियां इसके बोझ से उभर नहीं पाएंगी।
इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत
- पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अलग विकास मॉडल चाहिए, जो स्थानीय संसाधनों और संस्कृति पर आधारित हो।
- सख्त भू-कानून, पांचवीं अनुसूची और मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा ज़रूरी है।
- अनियोजित जलविद्युत परियोजनाओं और सड़क चौड़ीकरण पर रोक लगे, पर्यावरणीय मंज़ूरी को सख्ती से लागू किया जाए।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिए स्थानीय उत्पादों को बाज़ार, डिजिटल प्लेटफॉर्म और ब्रांडिंग की ज़रूरत है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति। बिना भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन के कोई योजना सफल नहीं होगी।
ऐसा हो भविष्य का उत्तराखंड
राज्य स्थापना दिवस सिर्फ़ बधाई और जश्न का दिन नहीं, आत्ममंथन का दिन है। शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। देवभूमि को बचाना है तो अब हर उत्तराखंडी को आगे आना होगा, चाहे वह गांव में रहकर खेती करे, शहर में रहकर आवाज़ उठाए या नीति-निर्माण में हिस्सा ले। 25 साल पूरे हुए, अब अगले 25 साल का सपना देखने का वक़्त है। एक ऐसा उत्तराखंड जहां गांव हंसें, नदियां बहें, जंगल हरे-भरे रहें और हर बच्चे को अपने घर में ही भविष्य नज़र आए।

