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राष्ट्रपति मुर्मू का उत्तराखंड विधानसभा में संबोधन: रजत जयंती पर विकास, शौर्य और महिला सशक्तिकरण की सराहना

राष्ट्रपति मुर्मू का उत्तराखंड विधानसभा में संबोधन: रजत जयंती पर विकास, शौर्य और महिला सशक्तिकरण की सराहना

उत्तराखंड राज्य की स्थापना की रजत जयंती के ऐतिहासिक अवसर पर विधानसभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सदस्यों को संबोधित किया। उन्होंने पूर्व और वर्तमान विधानसभा सदस्यों तथा राज्य के सभी निवासियों को हार्दिक बधाई दी। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 2000 में राज्य के गठन का उल्लेख करते हुए कहा कि यह जनमानस की आकांक्षाओं को साकार करने का परिणाम था।

विगत 25 वर्षों में उत्तराखंड ने पर्यावरण, ऊर्जा, पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि-उद्योग जैसे क्षेत्रों में प्रभावशाली प्रगति की है। साक्षरता दर में वृद्धि, महिलाओं की शिक्षा का विस्तार, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी तथा स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने के प्रयासों पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि विकास के इन समग्र प्रयासों से राज्य कई मानकों पर सुधार की ओर अग्रसर है।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में राज्य सरकार के प्रयासों की विशेष सराहना करते हुए राष्ट्रपति ने सुशीला बलूनी, बछेंद्री पाल, गौरा देवी, राधा भट्ट और वंदना कटारिया जैसी प्रेरणादायी महिलाओं की गौरवशाली परंपरा का जिक्र किया। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण को राज्य की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने पर बधाई दी और सभी हितधारकों से विधानसभा में महिलाओं की संख्या बढ़ाने का आह्वान किया।

उत्तराखंड को ‘देवभूमि’ बताते हुए राष्ट्रपति ने यहां की अध्यात्मिक और शौर्य परंपराओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही यह भूमि चंद और गढ़वाल राजवंशों के नाम से शौर्य का प्रतीक है। राज्य के युवाओं में सेना में सेवा करने का उत्साह देशवासियों के लिए गर्व का विषय है। संविधान निर्माताओं के नीति निर्देश के अनुरूप समान नागरिक संहिता विधेयक लागू करने के लिए विधानसभा सदस्यों की सराहना करते हुए उन्होंने 550 से अधिक विधेयकों के पारित होने का उल्लेख किया, जिनमें उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक, जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था विधेयक और नकल विरोधी विधेयक शामिल हैं। पारदर्शिता, नैतिकता और सामाजिक न्याय से प्रेरित इन कदमों की प्रशंसा की।

राष्ट्रपति ने विधानसभाओं को संसदीय प्रणाली का प्रमुख स्तंभ बताते हुए बाबासाहब आंबेडकर के उद्धरण का हवाला दिया कि जनता के प्रति निरंतर उत्तरदायित्व ही इसकी शक्ति है। इस वर्ष विधानसभा में ई-पेपरलेस सत्र की शुरुआत पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इससे सदस्य संसदीय प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे।

राज्य की अनुपम प्राकृतिक संपदा के संरक्षण के साथ विकास को जोड़ते हुए उन्होंने विधायकों से जन-आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देने का अनुरोध किया। ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना के साथ राज्य और देश को विकास पथ पर आगे ले जाने का विश्वास जताते हुए राष्ट्रपति ने सभी निवासियों के स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामना की।

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