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ऐसा निर्दलीय प्रत्याशी, जिनको भाजपा-कांग्रेस दोनों का मिल रहा समर्थन, पढ़ें रिपोर्ट

ऐसा निर्दलीय प्रत्याशी, जिनको भाजपा-कांग्रेस दोनों का मिल रहा समर्थन, पढ़ें रिपोर्ट

देहरादून: नगर निकाय चुनाव का शोर जोर पकड़ने लगा है। अब प्रत्याशी घरों से बाहर निकलने लगे हैं। खासकर भाजपा और कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशी कुछ वार्डों में पहली बार नजर आए। इन वार्डों में एक वार्ड संख्या-85 भी है। इस वार्ड में भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी जहां जनसंपर्क करते नजर आए। वहीं, दूसरी ओर निर्दलीय प्रत्याशी सोबत चंद रमोला लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनकी जनसभा ने भाजपा-कांग्रेस की टेंशन बढ़ा दी है।

अब हम आपको बताते हैं कि कैसे एक निर्दलीय प्रत्याशी को भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं का समर्थन मिल रहा है। यह वह समर्थन है, जो खुलेतौर पर मिल रहा है। इसके अलावा पर्दे के पीछे से भी भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेता भी सोबत चंद रमोला को समर्थन दे रहे हैं।

आज जहां एक तरफ सोबत चंद रमोला ने दौड़वाला में जनसभा की। वहीं, भाजपा के धर्मपुर विधायक अपने प्रत्याशी के जनसंपर्क में महालक्ष्मीपुरम और असपास के क्षेत्रों में पहुंचे। इस दौरान जो एक खास बात नजर आई। वह यह थी कि महालक्ष्मीपुरम में कोई भी अपने घरों से बाहर नहीं निकले। विधायक को बैरंग वापस लौटना पड़ा।

वहीं, दौड़वाला में निर्दलीय प्रत्याशी सोबत चंद रमोला के पक्ष में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इस दौरान लोगों ने रमोला को अपना प्रत्याशी बताया और पूर्ण समर्थन का ऐलान किया। इस तरह सोबत चंद रमोला जनता के प्रत्याशी हो गए हैं।

जनसभा में जो खास बात देखने को मिली, वह यह थी कि जनसभा और मंच पर लगभग सभी लोग भाजपा और कांग्रेस के पूर्व नेता थे। सभी ने ऐलान किया कि निर्दलीय सोबत चंद रमोला ही उनके प्रत्याशी हैं। लोगों ने उनके समर्थन में जमकर नारेबाजी भी की। निर्दलीय रमोला ने कहा कि वो चुनावी सभाओं में घोषणा नहीं करंगे।

बल्कि, चुनाव जीतने के बाद प्रत्येक क्षेत्र में जाकर लोगों की समस्याओं को सुनेंगे और उसके बाद उनके समाधान के लिए काम करेंगे। इस दौरान बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक भी मौजूद रहे। सोबत चंद रमोला भी पूर्व सैनिक हैं।

सवाल यह है कि आखिर सोबत चंद रमोला को भाजपा और कांग्रेस दोनों का साथ क्यों मिल रहा है? इस सवाल का जवाब यह है कि  दलअसल, भाजपा ने जिन मामचंद को मैदान में उतारा है, वो पहले कांग्रेस में थे। कांग्रेस से पहले प्रधान रहे। पार्षद का चुनाव भी जीते, लेकिन छह माह पहले वो भाजपा में शामिल हो गए।

भाजपा कार्यकर्ता इस बात से नाराज हैं कि जिन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को सालों से सींचा उनके हक पर मामचंद जैसे लोगों ने डाका डालने का काम किया है। पार्टी की मजबूती के लिए काम करने वाला कार्यकर्ता क्या केवल झंडे ही उठता रहेगा? वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।

वहीं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि मामचंद भगोड़ा है। पहले कांग्रेस में रहा और जब उसे भाजपा में सत्ता सुख नजर आया तो भाजपा में चला गया। उसने कांग्रेस के उन कार्यकर्ताओं के साथ छल किया है, जिन्होंने उनको बार-बार चुनाव जिताया। जब उनके काम करने की बारी आई तो भाजपा में चला गया।

ऐसा पहली बार हो रहा है, जब भाजपा और कांग्रेस दो विरोधी दलों के कार्यकर्ता एक साथ, एक जुट होकर किसी निर्दलीय को जीत दिलाने के लिए जोर लगा रहे हैं। जनसभा में भी सभीने इसी बात को दोहराया कि उनका विरोध पार्टी का नहीं है।

उनका विरोध ऐसे गलत नीतियों वाले नेता का है, जिसको केवल जनता के वोट चाहिए। उनको सोबत चंद रमोला जैसा नेता चाहिए, जो दिन-रात उनके साथ खड़ा रहे। मामचंद जैसा नेता नहीं, जो चुनाव जीतने के बाद अपने घर के दरवाजे बंद कर दे।

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