उत्तराखंड : महावीर रवांल्टा के नाम एक और उपलब्धि, ‘एक प्रेम कथा का अंत’ नाटक के लिए मिलेगा प्रतिष्ठित ‘मुनि ब्रह्म गुलाल ‘नाट्यश्री’ अलंकरण’ सम्मान
पुरोला: देश के प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा के नाम एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ गई है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपने लेखन के जरिए खास पहचान बना चुके महावीर रवांल्टा को प्रज्ञा हिन्दी सेवार्थ संस्थान ट्रस्ट-फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) की ओर से पद्म भूषण दादा बनारसी दास चतुर्वेदी स्मृति-‘मुनि ब्रह्म गुलाल नाट्यश्री अलंकरण’ से सम्मानित किया जाएगा।
यह सम्मान उन्हें 22-23 फरवरी 2025 को फिरोजाबाद में आयोजित राष्ट्रीय प्रज्ञा सम्मान समारोह में प्रदान किया जाएगा। संस्थान के प्रबंध सचिव कृष्ण कुमार कनक से मिली जानकारी के अनुसार इस सम्मान में उन्हें प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र व नगद राशि भेंट की जाएगी। महावीर रवांल्टा को यह सम्मान उनकी नाट्य कृति एक प्रेमकथा का अंत के लिए दिया जा रहा है, जो रवांई क्षेत्र की प्रसिद्ध लोकगाथा गजू-मलारी पर आधारित है।
उपन्यास, कहानी, कविता, लोक साहित्य, व्यंग्य, लघुकथा, आलेख, समीक्षा, साक्षात्कार जैसी अनेक विधाओं में अपने लेखन के जरिए अपनी खास पहचान बना चुके महावीर रवांल्टा अब तक अनेक नाटक और बाल एकांकी लिख चुके हैं। इनमें सफेद घोड़े का सवार, खुले आकाश का सपना, मौरसदार लड़ता है, तीन पौराणिक नाटक, गोलू पढेगा, ननकू नहीं रहा, श्पोखू का घमंड संग्रह प्रमुख हैं। लेखन के साथ ही अभिनय और नाट्य निर्देशन में अच्छी दखल रखने वाले महावीर रवांल्टा ने अस्सी के दशक से गांव की रामलीला व पौराणिक नाटकों के माध्यम से अभिनय में हिस्सेदारी की।
इस क्षेत्र में वो यहीं नहीं रुके, बल्कि के पी. सक्सेना के प्रहसन लालटेन की वापसी का रवांल्टी में हिस्यूं छोलकु नाम से नाटक का मंचन गांव में कराया। इसके साथ ही सत्यवादी हरिश्चंद्र, अहिल्या उद्धार, श्रवण कुमार, मौत का कारण, अधूरा आदमी, साजिश, जीतू बगड्वाल जैसे नाटकों के जरिए गांव में नाट्य शिविरों की शुरूआत की।
उत्तरकाशी में रवांई जौनपुर विकास युवा मंच के माध्यम से तिलाड़ी कांड पर आधारित मुनारबन्दी और बालपर्व, राजकीय पोलीटेक्निक में दो कलाकार ध्और समानान्तर रेखाएं, बुलन्दशहर उत्तर प्रदेश में ननकू नहीं रहा नाटक निर्देशित करने के साथ ही उत्तरकाशी की प्रसिद्ध कला दर्पणश् नाट्य संस्था की स्थापना में सक्रिय योगदान दिया और काला मुंह, बांसुरी बजती रही, अंधेर नगरी, हैमलेट, शूटिंग जारी है की प्रस्तुतियों से जुड़े रहे।
उतरकाशी के नाट्य इतिहास में वीरेंद्र गुप्ता निर्देशित पहले पूर्ण कालिक हास्य नाटक संजोग में नायक की यादगार भूमिका निभाई। डॉ. सुवर्ण रावत निर्देशित बीस सौ बीस, मुखजात्रा और चिपको में भी सक्रिय जुड़ाव रहा। रवांई क्षेत्र की लोककथा पर आधारित आपका नाटक धुएं के बादल शीघ्र ही पाठकों के सामने आने वाला है।
महावीर रवांल्टा लोकभाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए लगातार काम कर रहे हैं। रवांल्टी भाषा में लेखन की शुरूआत का श्रेय भी महावीर रवांल्टा को ही जाता है। अपनी लोकभाषा को पहचान दिलाने के लिए प्रयास किए और आकाशवाणी के जरिए इसे आगे बढ़ाया। धीर-धीरे खुद भी रवांल्टी में रचना संसार को आकार देते रहे और युवाओं की एक टीम भी खड़ी की, जो आज रवांल्टी भाषा आंदोलन को आगे बढ़ाने में सहयोग कर रही है।
रवांल्टी में वैसे तो आपके कविता संग्रहों के अलावा, ध्यान सिंह रावत, दिनेश रावत, अनोज रावत और अनुरूपा के भी कविता संग्रह सामने आ चुके हैं। लेकिन, इन सबके बीच जो सबसे बड़ी पलब्धि रही, वह रवांल्टी में बाल्मीकीय रामायण का प्रकाशन रहा। उत्तराखंड की भाषाओं में रवांल्टी में ही अब तक रामायण का अनुवाद हुआ है।