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उत्तराखंड: विश्वविद्यालयों किया जा रहा तबाही का इंतजाम, पढ़ें…क्या है पूरा मामला?

उत्तराखंड: विश्वविद्यालयों किया जा रहा तबाही का इंतजाम, पढ़ें…क्या है पूरा मामला?

उत्तराखंड: विश्वविद्यालयों किया जा रहा तबाही का इंतजाम, पढ़ें…क्या है पूरा मामला? पहाड़ समाचार editor

देहरादून: भाकपा (माले) के राज्य सचिव कॉमरेड इंद्रेश मैखुरी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा है। उन्होंने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यकाल बढ़ाए जाने की तैयारी को पूरी तरह गलत बताया और सीएम से इस मामले में हस्तक्षेप कर जांच की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि सुबह अखबार खोला और उसमें एक खबर देखते ही लगा कि इस प्रदेश के विश्वविद्यालयों की तबाही का इंतजाम किया जा रहा है.

खबर थी कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति को तीसरा कार्यकाल देने की तैयारी में है सरकार ! खबर के अनुसार उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति को पद पर बनाए रखने के लिए राज्य सरकार प्रदेश में कुलपतियों के पद पर बने रहने की उम्र को ही 65 से बढ़ा कर 70 वर्ष करने जा रही है. हाल में नियुक्त श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति के नियुक्ति के बाद यह एक और प्रयास है, जिसे पढ़ कर बरबस ही ख्याल आता है कि उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों की तबाही का इंतजाम किया जा रहा है.

बीते तीन-चार वर्षों में प्रदेश में सरकारी नौकरियों में घोटाले की बात रह-रह कर सामने आती रही है और राज्य सरकार भी उससे निपटने का दावा करती रही है. मैखुरी ने कहा कि जब-जब नियुक्तियों में घोटाले की बात आई, तब-तब उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियों पर प्रश्न चिन्ह लगा और विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी पर अंगलियां उठी.

इसका चरम यह था कि वर्ष 2021 में तत्कालीन राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया था कि उनकी जानकारी के बगैर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में नियुक्तियां की गयी, जिनकी संख्या तकरीबन 56 थी. उक्त नियुक्तियों में हुई गड़बड़ियाँ उत्तराखंड सरकार के ही ऑडिट विभाग ने पकड़ी थी.

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी पर आरोप है कि उन्होंने प्रोफेसरों की नियुक्ति में आरक्षण के रोस्टर से छेड़छाड़ की. आरोप है कि अनुसूचित जाति- अनुसूचित जनजाति व पिछड़ा वर्ग के आरक्षण में मनमाने तरीके से छेड़छाड़ की गयी. इस संबंध में मामला माननीय उच्च न्यायालय में विचारधीन है. प्रोफेसरों की नियुक्ति में राज्य की महिलाओं को मिलने वाला 30 प्रतिशत आरक्षण लागू ही नहीं किया गया.

एक ऐसा व्यक्ति जिसके कार्यकाल में नियुक्तियों में भ्रष्टाचार की बात राज्य सरकार के ऑडिट विभाग से लेकर तत्कालीन राज्यपाल तक मान चुके हैं, ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध तो जांच और कार्यवाही होनी चाहिए थी. लेकिन पता नहीं कैसे जांच के बजाय, उन्हें दूसरी बार पुनः कुलपति नियुक्त कर दिया गया ! और अब उनके सेवानिवृत्ति की आयु पूरी होने के दो महीने पहले चर्चा है कि उनको तीसरी बार कुलपति पद पर बनाए रखने के लिए कुलपतियों की सेवानिवृत्ति की आयु ही बढ़ा कर 70 वर्ष करने की तैयारी की जा रही है.

मैखुरी ने कहा कि यह अब कोई ढकी-छुपी बात नहीं रह गयी है कि नियुक्तियों में वैचारिक पक्षधरता एक बड़ा कारक बन गया है. लेकिन, यह हैरत की बात है कि यह वैचारिक पक्षधरता भी एक-दो लोगों के ही इर्द-गिर्द क्यूँ सिमट गयी है ?

जिस वैचारिकी के लोगों को कुलपति पद पर आसीन किए जाने के लिए राज्य सरकार को तलाश है, उसमें भी बहुतेरे और हैं, जो अपवाद ही सही, पर अकादमिक स्तर पर बेहतर हैं. सरकार में बैठे लोग स्वयं की वैचारिकी वाले अकादमिक लोगों के बारे में अनिभिज्ञ हों तो इस मामले में, सरकार की तरफ सहर्ष ही, मैं मदद का हाथ बढ़ाने को तैयार हूँ !

पर इस तरह उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय को भ्रष्टाचार और मनमानी के अड्डे में तब्दील करने वाले व्यक्ति को पुनः पद पर बैठाने के लिए आयु सीमा बढ़ाने का विशेष प्रयास किसी तरह भी तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता बल्कि, इससे तो ऐसा लगता है कि कोई संदिग्ध गठजोड़ है, जो एक व्यक्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है.

उन्होंने सीएम धामी सै कुलपति पद की सेवानिवृत्ति की अवधि बढ़ाने के बजाय उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी के संपूर्ण कार्यकाल की जांच करने के लिए SIT का गठन करने की मांग की है।

उत्तराखंड: विश्वविद्यालयों किया जा रहा तबाही का इंतजाम, पढ़ें…क्या है पूरा मामला? पहाड़ समाचार editor

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