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हिमालयी सरोकार, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण है हिमांतर का नया अंक

  • प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’ 

हिमांतर का नया अंक आ गया है। हर बार की तरह यह अंक भी कुछ खास और अलग है। हिमांतर केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि हिमालयी सरोकारों, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण बनती जा रही है। अब तक के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं। हर अंक ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। इस बार का अंक भी पहले के अंकों से अलग है। लेकिन, हर अंक की तरह ही इसकी आत्मा भी हिमालयी लोक समाज में बसती है। खास बात यह है कि इस बार के अंक नाम भी हिमालयी लोक समाज व संस्कृति रखा गया है। हरिद्वार में आयोजित रवांल्टा सम्मलेन में हिमांतर के नए अंक का विमोचन किया गया।

हिमांतर की खास बात यह है कि इसमें हिमालयी सरोकारों और हिमालयी समाज को केवल छूया भर नहीं जाता, बल्कि गंभीरता से हर पहलू को सामने लाया जाता है। इस बार के अंक के अतिथि संपाक रचनात्मकता के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता शिक्षक और साहित्यकार दिनेश रावत ने अपने अनुभवों को पूरी मेहनत से अंक में जान फूंकने का काम किया है। हिमांतर से जुड़ा हर व्यक्ति हिमालयी सरोकारों से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे में उनके लेखों में भी हिमालय जैसी ही गंभीरता नजर आ रही है।

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हिमांतर का केवल यही नहीं, बल्कि अब तक प्रकाशित सभी अंक केवल पत्रिका नहीं, बल्कि एक शोध पत्र है। यह वह दस्तावेज है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनके सरकारों से रू-ब-रू कराएगा और उनको उनकी जिम्मेदारियों का एहसास भी कराएगा। देशभर में कई तरह की पत्रिकाएं प्रकाशित होती भी हैं और हो भी रही हैं। लेकिन, ज्यादातर पत्रिकाओं में हिमांतर जैसा गंभीर लेखन कम ही देखने को मिलता है। वर्तमान दौर में हिमांतर स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एक अहम दस्तावेज साबित हो सकता है।

पत्रिका में पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल से साक्षात्कार पर्काशित है। उन्होंने बताया है कि किस तरह से लोक गीतों को जानाने का उनका सफर शुरू हुआ। माधुरी बड़थ्वाल को लोकगीतों का एनसायक्लोपेडिया कहा जाता है। लोकगीतों में हमारा लोक बसतता है।

बीना बेज्वाल नें प्रकृति व संस्कृति के उत्लास का पर्व है फूल संगरांद, चंद्रशेखर तिवारी नें नेपाल और कुमाऊँ की साझी विरासत सातू-आठूं , डॉ. नंद किशोर हटवाल ने पहाड़ की स्त्रियों ने गढ़ा है नंदा का मिथक, डॉ. दामोदर जोशी देवांशु’, हिमालयी लोकपर्व बिरुड़ पंचमी, डॉ. चरण सिंह केदारखण्डी ने केदारघाटी के मुख्य लोक उत्सव के बारे में बताया है।

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उत्तर का उत्तरायणी और उत्तरायणी की घुघुत माला के जरिये परभात पंत ने उत्तरायाणी पर्व के बारे में बताया है। संजय चौहान ने नंदा के मायके में नंदा की लोकजात यात्राएं, डॉ. महेन्द्र भानावत ने लोकसंस्कृति की विरासत, दिनेश रावत ने देवलांग लोक के आलोक में आस्था का उत्सव के जरिए लोक पर्व के बारे में पाठकों को बताया है।

दिनेश कुकरेती ने मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन, नीलम पांडे ‘नील’ ने लोक अभिव्यक्ति में स्त्री स्वर के जरिए महिलाओं की भूमिका को बताया है। जय प्रकाश पंवार ‘जेपी’ ने गढ़वाल में पांडव नृत्यों की परंपरा, डॉ.अजीत पंवार ने उत्तराखंड के लोक नाट्य परंपरा से थियेटर के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी सामने रखी।

डॉ.उमेश चमोला ने उत्तराखंड के संस्कार गीतों के बारे में विस्तार से लिखा है। प्रसिद्ध साहित्यकार महावीर रवांल्टा ने रंवाई क्षेत्र को लोक साहित्य से रंवाई क्षेत्र के लोक साहित्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। शिक्षक संदीप रावत ने अपने लेख गढ़वाली भाष मुद्रण की शुरूआत से अब तक की यात्रा के बारे में बताया है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल ने कुमाऊं के कोटलगढ़ के बारे में जानकारी दी है। सुनीता भट्ट पैन्यूली ने बलराम का एक मात्र मंदिर और मेला में बलराम से जुड़ी लोक आस्था से पाठकों को रू-ब-रू कराया है। डॉ.सुभाष चंद्र सिंह कुशवाहा ने कथाकार विद्यासागर नौटियाल के कथा साहित्य पर विस्तार से लिखा है। भारती आनंद ‘अनंता’ ने लोक की यथार्थपरक तस्वीर चित्रित करते गीतों के बारे में अच्छी जानकारी पाठकों के लिए पेश की है।

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मंजू काला ने विलुप्त होती पुरातन प्राद्योगिकी के बारे में बताया कि किस तरह से हम अपनी विरासतों को भूल रहे हैं। पत्रकार प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’ ने उत्तराखंड के परंपरागत खेलों के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने उन खेलों के बारे में जानकारी दी है, जो कभी आपके और हमारे जीवन का अहम हिस्सा होते थे।

असिता डोभाल ने महिलाओं की पहचान पिछौड़ी पर पिछौड़ी परिधान मात्र नहीं से इसके बारे में लिखा है। असिता लगातार सोशल मीडिया में भी लिखती रही हैं। इंद्र नेगी ने यमुना और टोंस घाटी का स्थापत्य पर अच्छी जानकारी दी है। वहीं, रंजना बौनाल ने कौन है जसुली सौक्याणी लेख में जसुली सौक्याणी के बारे में विस्तार से बताया है।

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