उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव का इतिहास, क्या बदल पाएगी कांग्रेस?
उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव का इतिहास, क्या बदल पाएगी कांग्रेस?
- प्रदीप रावत ‘रवांल्टा’
बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव का ऐलान हो चुका है। उपचुनाव के लिए नामांकन जमा करने की आखिरी तारीख 17 अगस्त है। 21 अगस्त तक नाम वापसी। 5 सितंबर को मतदान और 8 सितंबर को मतगणना के बाद चुनाव परिणाम जारी कर दिए जायेंगे। चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीतिक दल भी तैयारियों में जुट गए हैं। BJP इस उप चुनाव को हर हाल में जीतना चाहेगी। वहीं, कांग्रेस के लिए ये उप चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ी पीरक्षा है। कांग्रेस के संगठन का भी इस चुनाव में टेस्ट होने वाला है।
उपचुनाव में विपक्ष जीतेगा या सत्ता पक्ष? सबसे पहले इस सवाल की पड़ताल करना जरूरी है। उत्तराखंड में पहले भी उपचुनाव होते रहे हैं। उन उपचुनावों के परिणाम हमेशा विपक्ष के लिए निराशाजनक रहे। यही वजह है कि यह चुनाव कांग्रेस की कड़ी परीक्षा लेने वाला है। वहीं, BJP के लिए भी ये चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। खासकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को धयन में रखते हुए, हालांकि इसका बड़ा असर तो नहीं पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए माहौल बनाने का यह एक मौका जरूर है।
राज्य में उपचुनावों का इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है कि जब-जब जिसकी सत्ता रही है। तब-तब उसी राजनीतिक दल के उम्मीदवारों ने बाजी मारी है। सत्ता चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की। दोनों ही परिस्थितियां में जीत सत्ता पक्ष के हाथ लगी है।
एक चुनाव को छोड़ दिया जाए तो अब तक 14 बार विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 13 बार सत्ता पक्ष को ही जीत मिली है। सिर्फ एक बार यूकेडी (UKD) को उपचुनाव में जीत मिली है। बागेश्वर उप चुनाव के लिए भी यूकेडी का स्थानीय संगठन सक्रिय हो गया है और पूरी मजबूती से चुनाव लड़ने के दावे भी कर रहा है।
बागेश्वर उपचुनाव के लिए BJP पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक हो चुकी है। तीन नामों का पैनल हाईकमान को भेजा जा चुका है। हालांकि, अब तक नाम सामने नहीं आए हैं। वहीं, कांग्रेस (Congress) भले ही प्रदेश स्तर पर मंथन कर रही हो, लेकिन अब तक कांग्रेस ने खुलकर कुछ भी नहीं कहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस रंजीत दाव को ही फिर से मैदान में उतार सकती है।
जहां तक BJPका सवाल है, राजनीति गिलयारों की चर्चाओं की मानें तो भाजपा बागेश्वर में भी पिथौरागढ़ की तरह ही परिवार के किसी सदस्य को चुनावी मैदान में उतार सकती है। पिथौरागढ़ में प्रकाश पंत के निधन के बाद खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी को मैदान में उतारा गया था।
बागेश्वर (Bageswar By Election) को लेकर भी चर्चा है कि यहां भी दिवंगत मंत्री चंदन रामदास के बेटे या परिवार के किसी दूसरे सदस्य को मैदान में उतारा जा सकता है। भाजपा ने चुनाव की तैयारियां ग्राउंड लेवल पर शुरू भी कर दी है। यह भी दावा किया है कि चम्पावत उपचुनाव की तरह ही इस चुनाव को भी भाजपा रिकॉर्ड वाटों से जीतेगी।
उत्तराखंड में विधानसभा उपचुनाव का इतिहास, क्या बदल पाएगी कांग्रेस?